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मूल निवासी किन्हें कहते है। इनके मानव अधिकारों को प्रश्तुत चुनौतियों की चर्चा कीजिए।

 वे लोग जो उस भूमि पर उससे पहले से रह रहे थे जुब यह उपनिवेशी समाजों द्वारा विजयी कर ली ग़ई तथा जो स्वयं को उन समाजों से अलग समझते हैं जो इस समय उस भूमि पर शासन कर रहे हैं, मूल निवासी कहलाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अल्पसंख्यकों में भेदभाव के उन्मूलन तथा सुरक्षा पर सहं-आयोग के विशेष रिपोर्टर की परिभाषा के अनुसार, “मूल निवासी समुदाय, लोग अथवा राष्ट्र वे हैं जिनकी आक्रमण पूर्व तथा उपनिवेश-पूर्व समाजों के रूप में ऐतिहासिक निरन्तरता है जो इन भूमियों अथवा उसके कुछ हिस्सों पर रह रहे,थे। इस समय ये समाज का गैर-प्रधान भाग हैं परन्तु वे अपनी पूर्वजों की भूमि तथा अपनी जनजातीय अस्मिता को संरक्षित करने, विकसित करने. तथा आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करने के लिए दृढ़ निश्चयी हैं ये उनके सांस्कृतिक पैटर्न, सामाजिक संस्थाओं तथा कानूनी व्यवस्था के अनुरूप मूल निवासी के रूप में निरंतर अस्तित्व का आधार हैं।

वैश्विक स्तर पर मूल निवासियों की संख्या 30 से 50 करोड़ के बीच है। ये विश्व की 80 फ्रतिशत्‌ सोस्कृतिक तथा जैविक विविधता का सम्पोषण करते हैं तथा विश्व की.भूमि के 20 प्रतिशत हिस्से के-मालिक हैं| विश्व के ये मूल निवासी काफी भिन्‍नताएँ लिए हुए हैं। ये लगभग विश्व के समी देशों, सभी महाद्वीपों में रह रहे हैं तथा मानवता के एक ऐसे वर्णक्रम का निर्माण करते हैं जिनमें परम्परागत शिकारियों, जीवन निर्वाही किसानों से लेकर कानूनी विशेषज्ञ तक निहित हैं। कई देशों में मूल निवासी जनसंख्या का अधिकतम भाग है जबकि कई अन्य देशों में ये अल्पसंख्यक समूहों तक सीमित हैं [मूल निवासियों की सबसे बड़ी चिन्ता अपनी भूमि का संरक्षण, तथा भाषा एवं संस्कृति की सुरक्षा है। कुछ मूल निवासी अपनी परम्परागत जीवन शैली को बनाए रखना चाहते हैं जबकि कुछ अन्य वर्तमान राज्य के ढाँचों में सक्रिय भागीदारी की. इच्छा रखते हैं। अन्य सभी संस्कृतियों एवं सभ्यताओं की तरह, मूल निवासी भी हमेशा संसार में होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप स्वयं को ढालते रहते हैं। मूल निवासियों को अपनी दयनीय स्थिति के बारे में पूरा एहसास है तथा वे धरती के प्रति सम्मान पर आधारित अपने आत्मनिर्णय के लिए कार्यरत हैं। संसार के मूल निवासी समुदायों के बीच व्यापक विभिन्‍नता के बावजूद उन सबमें एक चीज सांझी है - उनका अन्याय का इतिहास सांझा है। मूल निवासियों की हत्या की गई है, उन पर अत्याचार किए” गए हैं, उन्हें दास बनाया गया है। कई स्थानों पर ये जनसंहार के शिकार भी रहे हैं। वर्तमान राज्य व्यवस्था की अभिशासन व्यवस्था से उन्हें बाहर रखा गया है। विजय तथा उपनिवेशवाद ने मूल निवासी के रूप में उनकी प्रतिष्ठा, सम्मान एवं अस्मिता की चोरी करने का प्रयास किया है तथा उनके आत्मनिर्णय के अधिकार को धक्का पहुँचाया है।

मूल निवांसियों के अधिकार खतरे में

मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र (UDHR) जो सभी मानव जाति को मौलिक- अधिकारों की गारंटी देता है, की अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता तथा स्वीकृति के बावजूद, वास्तव में प्रत्येक स्तर पर मूल निवासियों के मौलिक अधिकार विशेष सुरक्षा कवच से अभी भी वंचित हैं। आज भी मूल निवासियों को सरकारों की क्रमबद्ध तथा योजनाबद्ध नीतियों के परिणामस्वरूपं अपने अस्तित्व को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। अधिकतर देशों में, अवनति के सूचंकांक में मूल निवासियों का स्थान सबसे पहले आता है जैसे जेलों में बंद लोग, निरक्षरता दर, बेकारी दर आदि स्कूलों में इनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है, कार्य स्थलों पर इनका शोषण किया जाता है। कई देशों में स्कूल स्तर पर इन्हें अपनी भाषा में शिक्षा लेने की आज्ञा नहीं है। अन्यायपूर्ण संधियों के माध्यम से इनकी पवित्र भूमि तथा पुरानी कलात्मक वस्तुएँ इनसे छीन ली गई हैं। राष्ट्रीय सरकारें इन मूल निवासियों को अपनी परम्परागत भूमि पर रहने से मना कर रही है तथा उन भूमियों के शोषण के लिए ऐसी नीतियों को कार्यान्वित कर रही है जिन्हें इन्होंने सदियों से सम्पोषित किया है। कई देशों में सरकारों ने,जंबरन सम्मिलन की नीतियाँ लागू की हैं ताकि मूल निवासियों, उनकी परम्पराओं तथा संस्कृति का सफाया कर दिया जाए | संक्षेप में, सम्पूर्ण विश्व में विभिन्‍न सरकारों ने मूल निवासियों के मूल्यों, “प्रम्पराओँ तथा मानव अधिकारों के लिए किसी प्रकार का सम्मान नहीं दिखाया।

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