आत्मनिर्णय के अधिकार का अर्थ
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आत्मनिर्णय का अधिकार एक महत्वपूर्ण तथा मूल मानव अधिकारों के रूप में उभरा है। मानव अधिकारों के प्रोत्साहन तथा कार्यान्वयन के लिए एक सामान्य ढाँचे तथा आधारशिला की रचना करके यंह अन्य मानव अधिकारों तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण भूमिकां निभाता है। साथ ही, प्रत्येक मानव अधिकार के लिए सम्मान आत्मनिर्णय के अधिकार को प्राप्त करने में योगदान देता है। इन तथ्यों के बावजूद, विद्वानों तथा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आत्मनिर्णय की सटीक परिभाषा तथा इससे जुड़े कई अन्य क्लिष्ट प्रश्मों पर अभी भी सहमति नहीं है, जैसे “लोग” में कौन आता है?, “लोग” की - रचना कैसे होती है?; क्या यह केवल राजनीतिक या नैतिक अधिकार है? या एक कानून अधिकार है?; क्या इसे लागू किया जा सकता है ण क्या इसे लागू किया जाना चाहिए?; क्या यह इनमें से कुछ भी नहीं है या सब कुछ है या इनसे भी अधिक है? कया पृथक होने का अधिकार आत्मनिर्णय के अधिकार का भाग है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर देना न तो संभव है और न ही वांछनीय | तथापि यहाँ हम आत्मनिर्णय के अधिकार के विभिन्न पक्षों की चर्चा करते हुए इसका अर्थ समझने का प्रयत्न कर रहे हैं।
आत्मनिर्णय के सिद्धांत के अर्थ तथा सार रूप में विभिन्न विद्वानों तथा राज्यों में मतभेद रहे हैं। आत्ननिर्णय को एक सैद्धान्तिक अवधारणा के रूप में परिभाषित करने तथा इसे एक व्यापक अर्थ देने के लिए, विद्वानों ने 1970 तथा 1980 के दशकों में एक. लचीला दृष्टिकोण अपनाया। उदाहरण के लिए एलफ्रेड कोबान के अनुसार आत्मनिर्णय - किसी राष्ट्र का एक स्वतंत्र राज्य का निर्माण करने तथा अपने लिए अपनी सरकार निश्चित करने काअधिकार है"| इसकी आगे व्याख्या करते हुए, वह लिखता है कोई भी क्षेत्रीय समुदाय, जिसके सदस्य स्वयम् को उस समुदाय के सदस्य के रूप में सचेत पाते हैं तथा अपने समुदाय की अस्मिता को ब्रनाए रखना चाहते हैं, को राष्ट्र का नाम दिया जा सकता है। रोबर्ट फ्राईलैण्डर के अनुसार “आत्मनिर्णय का अभिप्राय है मताविलम्बी लोगों की अपने बलबूते पर एक व्यवहार्य राजनीतिक इकाई स्थापित करने की स्वतंत्रता तथा इस इकाई के संरक्षण के लिए किसी भी प्रकार का राजनीतिक तथा सामाजिक ढाँचा चुनने का अधिकार“। आत्मनिर्णय की धारणा के विशेषज्ञ रुपर्ट इमरसन के अनुसार, इस धारणा का अर्थ है बिना किसी हस्तक्षेप के लोगों द्वारा अपने समाज के आन्तरिक ढाँचे तथा कार्यविधि निश्चित करने का अधिकार |” इयान ब्राऊनली के विचार में यह एक संसजक राष्ट्रीय समूह (लोगों का) का किसी विशिष्ट राजनीतिक संगठन को चुनने तथा इसका अन्य समूहों के साथ सम्बन्ध बनाने का अधिकार है। इसकी आगे व्याख्या करते हुए वह लिखता है कि यह चयन एक स्वतंत्र राज्य, एक संघीय सरकार एवं अन्य समूहों के साथ साहचर्य, अथवा, स्वायत्तता या एक एकात्मक राज्य में विलय कुछ भी हो सकता है। अतः उपरोक्त . परिभाषाएँ आत्मनिर्णय को एक व्यापक अर्थ में देखती हैं जैसे .आत्मशासन, स्वायत्तता तथा कुछ हद तक पृथक्कता। 1971 में बांग्लादेश के उदय ,को फ्राईलैण्ड तथा ब्राउनली के उपरोक्त अर्थों के आधार पर न्यायोचित ठहराया जा सकता है। इसके विपरीत हैन्स कैल्सन जैसे लेखकों ने आत्मनिर्णय की धारणा की काफी संकुचित व्याख्या की। इसके अनुसार आत्ननिर्णय का अर्थ है राज्यों की प्रभुसत्ता के अलावा और कुछ नहीं। तथापि इसके विचारों को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के केवल पाँच वर्ष के अनुभव पर आधारित था। इसमें संदेह है कि इक्कीसयीं शताब्दी के आरंभ के समय पर भी केल्सन इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है।
आत्मनिर्णय के अर्थ तथा सार रूप में विभिन्न राज्यों के विचार भी भिन्न रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की प्रसंविदाओं में आत्मनिर्णय के अधिकार से सम्बन्धित अनुच्छेद निहित करते समय इसकी परिभाषा से सम्यन्धित प्रश्नों पर विचार किया गया था। परन्तु क्योंकि यह धारणा अपरिभाषित रही है अत: कई राज्यों की माँग है कि इस धारणा को लागू करने से पहले इसे परिभाषित किया जाना जरुरी है। इस संदर्भ में फ्रांस ने एक बार प्रस्ताव रखा था कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून आयोग को आत्मनिर्णय की प्रकृति, इसकी आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विषयवस्तु तथा इसकी अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अन्य धारणाओं के सम्बन्ध (विशेषतः राज्य तथा राष्ट्र की धारणाओं के साथ) का अध्ययन करना चाहिए। इसी तरह का एक प्रस्ताव अमरीका की तरफ से भी आया जो चाहता था “लोग” तथा राष्ट्र जैसी धारणाओं, समान अधिकार तथा आत्मनिर्णय के अधिकार के सिद्धान्त का उपयोग, तथा आत्मनिर्णय तथा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अन्य सिद्धान्तों के बीच सम्बन्ध जैसे मुद्दों पर अध्ययन के लिए एक तदर्थ आयोग स्थापित किया जाना चाहिए।
इसके विपरीत, उपनिवेशवाद का विरोध करने वाले देशों का मानना था कि आत्ननिर्णय की धारणा की मान्यता तथा कार्यान्वयन के लिए इसकी परिभाषा निश्चित करना अनिवार्य नहीं है। इन देशों के दबाव के चलते संयुक्त राष्ट्र ने आत्मनिर्णय की धारणा की परिभाषा निश्चित करने के बजाय इसके कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया। परिभाषा के बारे में अधिक परवाह न करते हुए, आम समा ने अपने दसवें सत्र में दोनों प्रसंविदाओं में निहित करने के लिए अनुच्छेद 1 के मसौदे को अपनी स्वीकृति दे दी।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अन्तर्गत लोगों का आत्मनिर्णय का अधिकार
संयुक्त राष्ट्र चार्टर में आत्मनिर्णय के सिद्धान्त का दो स्थानों पर वर्णन किया गया है। अनुच्छेद 102) के अनुसार संयुक्त राष्ट्र का एक उद्देश्य विभिन्न देशों के बींच परस्पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना है जिनका आधार 'समानु अधिकार तथा लोगों के आत्ननिर्णय के रिद्धान्तों का सम्मान” तथा “सार्वजनिक शान्ति को सशक्त करने के लिए उचित कदम उठाना है।” इसी तरह अनुच्छेद 55 में “स्थायित्व तथा कल्याण की ऐसी परिस्थितियों के निर्माण की बात कही गई जो “समान अधिकार एवं लोगों के आत्मनिर्णय पर आधारित शान्तिपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के लिए आवश्यक है।“ वास्तव में, संयुक्त राष्ट्र चार्टर में यह दोनों अनुच्छेद सोवियत संघ की पहल पर सम्मिलित किए गए थे। सोवियत प्रतिनिधि का कहना था कि यह सिद्धान्त 1936 के सोवियत संविधान से लिया गया है| परन्तु ध्यान देने योग्य बात यह है कि चार्टर आत्मनिर्णय के “सिद्धान्त” की बात करता है, आत्मनिर्णय के अधिकार की नहीं। चार्टर में केवल एक राजनीतिक सिद्धान्त को स्वीकार किया गया। इसे मानव अधिकारों से अलग रखा गया। मानव अधिकारों से सम्बन्धित वाक्यांश लोगों के आत्मनिर्णय के सिद्धान्त का जिक्र भी नहीं करते। चार्टर में इनका वर्णन राज्य के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के दृष्टि से है। यह जानना काफी रोचक है कि चार्टर के अनुच्छेद 1(3) तथा 55(सी), जो मानव अधिकारों को प्रोत्साहित करते हैं, में आत्मनिर्णय के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया।
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box