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भारतीय सभ्यता के अध्ययन के सांस्कृतिक संचार उपागम की चर्चा कीजिये |

  सभ्यता लेटिन शब्द 'सिविस' से निकला हैं, जिसका मतलब है “नागरिक” या “शहरवासी“| इस तरह सभ्यता के वर्णन में ही जटिलता का रूप प्रकट हैं। शब्द का मतलब कुछ कृषि काय, व्यापार, कुछ नियोजित निवास.स्थान, अनके सस्कृति, कला, धर्म और कुछ प्रशासनिक और राजनितिक संरचना माना गया हैं। सभ्यता मानव समूहीकरण समाज के सांस्कृतिकभौतिक और अभौतिक / वैचारिक.लक्षणां और निश्चित राजीनीति की एक जटिलता है। इस प्रकार सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसके समाज का हम लोगां को शिल्पकृतियों और स्मारकों से पता चला, वह सभ्यता मानी जाती हैं। भारत की एक प्राचीनतम तथा प्रचलित संस्कृति मानीजाती है क्‍योंकि इसकी उत्पत्ति हडप्पा सभ्यता में देखी जा सकती हैं।

यहाँ असंख्य विद्वत्तापूर्ण विवरण हैं जिन्हानें भारतीय सभ्यता पर, इसके समाज और संस्कृति को समझने के लिए अनेक शोध प्रस्तुत किये हैं। ऐसा करने में, ये कथन एक सभ्यता के रूप म भारत की विविधता आरै पच्रुरता का प्रमाण दते हं और अनके वचारिक उपक्रम / तरीके प्रदान करता है, जो इसके अध्ययन में प्रयोग हुए है। कोहन (1971) के अनुसार इन विवरणों के आधार पर भारतीय सभ्यता को समझने के लिए चार व्यापक दृष्टिकोण दिये जा सकते हैं। जो निम्न है :

·         सूचीपत्र दृष्टिकोण

·         सांस्कृतिक मूलतत्व दृष्टिकोण

·         सांस्कृतिक संचार का दृष्टिकोण

·         भारत को एक प्रकार के रुप मे देखना

सांस्कृतिक संचार का अध्ययन

सांस्कृतिक संचार दृष्टिकोण उन तरीकों और प्रक्रिया पर प्रकाश डालता है जिसके माध्यम से सभ्यता व्यवस्था के तत्व समाज के विभिन्‍न स्तर पर हस्तांतरित और संचारित होते हैं। यह भारतीय सभ्यता की संरचना के एकीकरण की ओर ध्यान आकर्षित करता हैं। मानव सामाज वैज्ञानिकों, मैकिम मैरियट (1995) और राबर्ट रेडफिल्ड (1956) का कार्य सभ्यता के विभिन्‍न भागों म समझने के लिए महत्वपूर्ण मुख्य आधार प्रदान करता हैं। मैरियट ने सांस्कृतिक संयागे और वृहत (महान) व लघु परम्परा के बीच के परस्पर लेन देन को दर्शाया है, जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव में किशंगढ़ी, में त्योहारों के मनाने पर ध्यान केन्द्रित किया | उसकी भाँति ही, रेडफील्ड का वर्णन ग्राम्य.नगरीय सततता के रूप में वृहत परम्परा (महान) और लघु परम्परा के बीच में परस्पर क्रिया और संचार की सततता को दर्शाता हैं, जो दोनों के बीच में सहजीवी और अन्तनिर्भरता के संबंध को बताता हैं। आप सभ्यता के तत्व, समाज और संस्कृति के संबंध में मैरियट और रेडफील्ड के विचार को और अधिक बाक्स 1 और 2 में पढ़ सकते हैं।

बाक्स 1 लघु और वृहत (महान) परम्परा

राबर्ट रेडफील्ड का अध्ययन कृषक समाज और संस्कृति सभ्यता का मानवशास्त्रीय उपागम (1956) उनके लेटिन अमेरिकी किसानों के अनुभव पर आधारित हैं। जबकि मैरियट की तरह ही उन्होंने भी खोज कि कृषक आधारित समाज पृथक और परिबद्ध नहीं होता हैं। कृषक की जीवन पद्धति जनजाति, शहर और शहर के लोग से प्रभावित होती हैं। उन्होने कृषकों के समाज को सामाजिक संबंधो की व्यवस्था के रुप में देखा, जहाँ संबंध इस से बाहर और बृहत समुदाय तक फैलते हुए होते हैं। उनका जोर इस बात को दर्शाने पर था कि कृषक समुदाय जो लघु परम्परा का धारक है और शहरवाले तथा वो आबादी जो वृहत परम्परा का निर्वाह करती है, के बीच अन्तनिर्भरता है।

बाक्स 2 स्थानिकीकरण और सार्वभौमिककरण

मैक्सि मैरियट का काम 'एक स्वदेशी सभ्यता में छोटा समुदाय” (1955), स्थानीकीकरण और सर्वाभामिकरण की दोहरी संकल्पना का प्रस्ताव प्रस्तुत किया ताकि भारत में (महान) वृहत परम्परा और लघु परम्परा के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान का वर्णन कर सके। सार्वभौमिककरण एक प्रक्रिया है जिसके तहत लघु परम्परा को व्यापक रुप से वृहत परम्परा में बदला जाता हैं। दूसरे शब्दों में यह स्थानीय अधिकार, महत्व और सांस्कृतिक विचार को सर्वव्यापी सांस्कृतिक विश्वास व्यवस्था के द्वारा व्यवस्थापन और मानकीकरण से जोड़ता हैं। अपनी बात को समझाने के लिए उन्होने दिवाली प्रकाश पर्व को लिया जो स्थनीय रूप से किशनगढ़ी गाँव में धन और समृद्धि की देवी सौरती को संतुष्ट करने के लिए मनाया जाता है कि सौरती जो कि लघु परम्परा है लक्ष्मी देवी का व्यापक रुप है क्योंकि सौरती को भी धन और समृद्धि के लिए ही पूजा जाता हैं। सार्वमौमिककरण की विरोधी प्रक्रिया स्थानिकीकरण है। यह रीति, विश्वास और सांस्कृतिक विचार का नीचे की ओर प्रसार विचार है ताकि व्यापकता के आग्रह का स्थानीय वातावरण में समाहित हो सके। यह भारत की देशी संस्कृति में छोटी सांस्कृति की सृजनता दिखलाता हैं। मैरियट इस प्रक्रिया को किशनगढी को नौरथा पर्व को दिखाकर समझाता हैं, वह इसे नवरात्री का संकीर्ण स्वरुप बताता है जिसमें कि नौ पवित्र दिनों तक दुर्गा का नव रुपों का पूजन किया जाता हैं।

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