सन् 1853 में नानकिंग पर ताइपिंगों का कब्जा एक अर्थ में तो इस बात का सूचक था कि ताइपिंग विद्रोह की महत्वकांक्षा कितनी असीम थी। लेकिन, एक और अर्थ में इस विजय ने आदोलन की सीमा का भी संकेत दे दिया, क्योंकि नानकिंग पर विजय के तुरंत बाद ही ताइपिंग नेताओं ने यह महत्वपूर्ण निर्णय ले डाला कि वे अपनी पूरी शक्ति के साथ पीकिंग की ओर नहीं बढ़ेंगे। उन्होंने निर्णय लिया कि वे नानकिंग और यागसी नदी क्षेत्र पर अपनी पकड़ को मजबत करेंगे और पीकिंग में अपनी सेना का केवल एक हिस्सा ही भेजेंगें। उनके इस निर्णय ने ही दरअसल चिंग वंश को बचा लिया। ताइपिंगों के उत्तर की ओर कमजोर अभियान को 1855 के वसंत तक कचल दिया गया और पीकिंग में चिंग सरकार का व्यवस्था : केंद्र और मुख्यालय ज्यों के त्यों बने र& सके! ताइपिंग विद्रोह को परी तरह कचलने में तो और नौ वर्ष लग गये फिर भी यांगसी नदी घाटी ' स्वर्गीय राज्य” की धुर उच्तरी सीमा बनी रही। इस तरह, चिंग साम्राज्य का एक बड़ा हिस्सा अछ॒ता बचा रहा।
1) जेंग क्वो-फान और चिंग सरकार के ताइपिंगों को दबाने के प्रयास
ताइपिंग पर कब्जा कर लेने के बाद ताइपिंगों ने अपने सैनिक प्रयासों को यांगसी नदी के सड़ारे, पश्चिम में वृचंग से पूर्व में चिनकियांग तक के प्रमुख कस्बों और शहरों पर कब्जा जमाने में लगा दिया। शुरुआत में,चिंग सेना की प्रतिक्रिया प्री तौर पर बचाव करने की रही। शाही सेनाओं ने नानकिंग के बाहर दो शिविर लगाये, एक यांगसी नदी के उत्तर में और दूसरा उसके दक्षिण में। लेकिन ब॑ ताइपिंग सैनिकों को नदी के दोनो ओर स्थित संपन्न (प्रशासकीय) प्रांतों को रौंदने से रोक नहीं पाये। गिरे हए मनोबल और प्राने पड़ गये संगठन बाली शाही सेनाएं ताइपिंगों की अत्यधिक प्रेरित और जेहादी सेना के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती थीं।
जब चिंग सरकार को आखिरकार इस सक्ष्चाई का होश आया तो उसने हताशा में कई कदम उठा डाले। जैसे, 1853 में उसने अपने ग्रह प्रांत, हुनान में छूटूटी बिता रहे एक महत्वपूर्ण अधिकारी जिंग क््वो फान को यह निर्देश दिया कि वह वहां उपद्रव कर रहे ताइपिंग विद्रोहियों को ललकारने के वास्ते एक सैन्य बल तैयार करे। जेंग ने निष्ठा (या. राजभकति) का परिचयदेते हुए इस निर्देश का पालन किया, लेकिन इसे क्रियान्वित करने के बारे में उसके अपने अलग विचार थे।
जेंग ने दुश्मनों जैसे ही चुस्त संगठन और फ़तिबद्धता वाली एक सेना का गठन करने का काम शुरू कर दिया। इस सेना को ''मानव सेना” का नाम दिया गया। उसने बहूत सतर्कता बरतते हुए विद्वान अधिकारियों का चयन सेनापतियों के तौर पर किया। इन सेनापतियों ने फिर स्थानीय किसान वर्ग में से ऐसे सिपाहियों की भर्ती की जो उनके प्रति निष्छावान रहे। नियमित सेना को सिपाहियों की तुलना में अच्छा वेतन और प्रशिक्षण दिया जाता था। उनमें यह विश्वास कट-कूट कर भर दिया गया कि बे लूटमार करने वाली ''डाक्' सेनाओं से अपने गांवों, अपनी जमींनों, अपने मंदिरों और अपनी जिंदगियों की रक्षा कर रहे थे। साथ ही साथ जेंग क्यो -फान ने स्थानीय लोगों के प्रत्येक वर्ग से भी यह सार्वजनिक आग्रह किया कि वे विद्रोहियों को दबाने के अभियान में सहायता करें।
जेंग की सविचारित और क्रियान्वित रणनीति ने अच्छे परिणाम दिये। शुरुआत में तो, ताइपिंग सैनिकों और नयी हुनान सेना के बीच होने वाली मुठभेड़ ने किसी के भी पक्ष में परिणाम नहीं दिये। लेकिन 1856 के मध्य में नानकिंग के बाहर शिविर डाले नियमित शाही सेनाओं की जबरदस्त हार ने यह सुनिश्चित कर दिया कि इसके बाद जेंग क्यो -फान की नयी सेना के अलावा और कोई भी सेना ताइपिंगों को ललकार नहीं सकती। इस सच्चाई को स्वीकारते हुए, चिंग दरबार ने जेंग क्वो-फान को दिए हुए अधिकारों और जिम्मेदारियों को और बढ़ा दिया। 1860 तक जेंग को शाही आयुक्त का ऊंचा पद और ताइपिंगों के खिलाफ होने वाली तमाम कार्यवाहियों की कमान दे दी गयी थी और इस वर्ष तक उसके पास 120,000 जवानों की एक बढ़िया सेना और योग्य सेनापतियों और रणनीतिज्ञों की कमान थी।
2) पश्चिमी ताकतों का रवैया
शरुआत में, संधिगत बंदरगाहों में विद्यमान पश्चिमी ताकतों का रवैया ताइपिंग विद्रोह के प्रति सहानुभूतिपूर्ण था। 1850 के दशक में पश्चिमी ताकतों और चिंग सरकार के बीच तनाव बढ़ा और इन ताकतों के लिए ऐसा कोई आग्रहपर्ण कारण नहीं था कि वे चिंग सरकारकी सरक्षा के लिए आगे आतीं। इसके अलावा ताइपिंगों का प्रकट रूप में ईसाई धर्म के एक रूप का पालन करना भी इनके पक्ष में जाता था।
लेकिन, अधिकारिक तौर पर पश्चिमी ताकतों विशेषकर अंग्रेजों, का रवैया अटल तटस्थता या रुक कर देखने का था। जब तक पश्चिमी ताकतों के संधिगत अधिकारों, संधिगत बंदरगाहों और वाणिज्य पर कोई आंच नहीं आ रही थी, तब तक उनके पास हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था।
3) ताइपिंग आंदोलन की आंतरिक समस्याएं
सन् 1865 में नानकिंग का घेरा डाले शाही सेनाओं की हार के साथ ताइपिंगों की स्थिति में सढ़ाव भी आया और उसी वर्ष ताइपिंग आंदोलन के अंदर एक बड़ा संकट भी देखने में आाया। उसके चोटी के नेताओं के बीच होने वाले दलगत झगड़ों ने इस आंदोलन को ऐसा झटका दिया जिससे वह कभी उबर नहीं पाया।
पर्व राजा, यांग शिंन चिंग, ने कई वर्षों से प्रतिद्वंद्वी राजाओं की कीमत पर अपनी स्थिति ऊंची करने का प्रयास किया था। पूर्व राजा के पास निश्चित सैनिक सामर्थ्य थी और वह स्राध्यात्मिक मामलों में चत्राई से जोड़तोड़ भी कर लेता था (जैसे, समाधि लगा लेना) इसी के बते उसने 1856 तक अपनी स्थिति ऐसी कर ली थी कि हंग श्यू-चुआन के बाद और कोई उसकी बराबरी पर नहीं था।
लेकिन, यांग की महत्वाकांक्षा खुद हंग को हटाकर उसकी जगह लेने की थी। उसने इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर दिये। लेकिन हंग ने जल्दी ही उसकी चालों को समझ लिया। हंग ने अन्य दो राजाओं, उत्तर राजा और सहायक राजा, को अपनी रक्षा के लिए बला लिया (दक्षिण राजा और पश्चिम राजा दोनों पहले के अभियानों में मारे जा चुके थे)। उन्होंने पूर्वजा को मार डाला और उसके 20,000 से भी अधिक अनयायियों को भी मौत के घाट उतार दिया। लेकिन, इस प्रक्रिया में वे एक दूसरे के विरोधी हो बैठे। इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर राजा ने सहायक राजा के पूरे परिवार और अनुयायियों की हत्या करवा दी। उत्तर गजा की इन हरकतों से क्षुब्ध होकर हंग ने यांग के मरने के केवल तीन महीनों के बाद उसे भी मरवा दिया। हंग का भी सहायक राजा से विरोध हो गया, जिसके परिणामस्वरूप सहायक राजा बड़ी संख्या में अपने अनुयायियों ने साथ उससे अलग हो गया। पूस यबके अंत में, हंग के अतिरिक्त नेताओं के मूल गुट का कोई भी सदस्य नहीं बचा। हंग ने अपने आपको सरकारी कामकाज से धीरे-धीरे अलग कर लिया। अगर उसका एक अंतिम शोष सहायक प्रयास न करता तो इस बात की पूरी संभावना थी कि ताइपिंगों का आंदोलन जो सात वर्ष और सल गया, न चला होता।
4) ताइपिंगों की पराजय
खात्मा जेंग क्यो -फान के समग्र निर्देशन में चलने वाले तिहरे आंदोलन पर हुआ। जेंग के भाई को नानकिंग को घेरने का जिम्मा दिया गया। ली हंग-चांग के पास क्यांगस् को शांत करने का जिम्मा था, जबकि एक और सेनापति जो जुंग-तांग को चेकयांग प्रांत में लड़ने का जिम्मा दिया गया। इसके पहले, ताइपिंगों का पश्चिम की ओर अंतिम बड़ा आक्रमण अभियान 1861 में पिट चुका था।
सन् 1864 तक, चिंग शासन के प्रति निष्ठावान सेनाबों को एक के बाद एक सफलता मिली थी और नानकिग में छिपे ताइपिंगों की स्थिति कमज़ोर पड़ गई थी। फिर भी, नानकिंग के रक्षकों ने अंतिम व्यक्ति तक लड़ाई लड़ी और एक व्यक्ति ने भी समर्पण नहीं किया। अंत में 19 जुलाई, 1864 को जेंग क््वो-फान की सेना ने नानकिंग पर कब्जा किया तो उसमें बहुत खून बहा। जेंग क्वो-फान की सेनाओं ने अपनी जीत में कोई दया नहीं दिखायी। उन्होंने अभियान के अंतिम चरण में ही कई लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
एक समय ऐसा था जब यह संभव दिखायी देता था कि ताइपिंग विद्रोह चिंग शासन का तख्ता पलट देंगे और पूरे चीन पर विजय हासिल कर पाएंगे। लेकिन उनका हास और पतन बहुत तेजी से हुआ। ताइपिंग नेताओं के बीज जो भयंकर शत्रुता बनी, उसने आपसी झगड़ों को जन्म दिया। यह निस्संदेह उनकी हार का एक प्रमुख महत्वपर्ण कारण था। विद्रोह के अंतिम दौर में, ताइपिंगों के पास सच में कोई केंद्र-केंद्रित कमान नहीं रह गयी थी। उनके सबसे प्रतिभाशाली सेनापति और संगठनकर्त्ता भी छिन गये थे जिन्होंने आंदोलन को बहुत नीचे से उठाकर इस स्थिति तक पहुंचाया था।
संयोग ऐसा रहा कि जब ताइपिंगों के नेतृत्व का स्तर गिरने लगा, तभी चिंग सेनाओं के नेतृत्व में मजबूती और पुनर्जागरण आया। जेंग क्बो-फान के नेतृत्व में पुराने और बेअसर सैनिक तंत्र की जगह जो नयी सेनाओं का गठन किया गया, वह ताइपिंगों की हार में निर्णायक बना। इन सेनाओं के नेताओं का चुनाव खुद जेंग ने प्री सतर्कता के साथ, उनकी प्रतिभा, योग्यता और उसके प्रति उनकी निष्ठा के आधार पर किया था।
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