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मेजी संविधान पर एक नोट लिखिए।

 जापान में संविधानों का एक लंबा इतिहास रहा है, और सबसे पहला संविधान 17 अनुच्छेदों वाला संविधान है जिसे 604 ई. में शोतोकू ताइशी ने जारी किया। लेकिन आधुनिक दंग के संविधान का श्रेय चीनी आदर्शो की अपेक्षा पश्चिमी कानूनी प्रभाव को अधिक जाता है। मेजी काल से पहले सामंतों की विचारक सभाएं रही थीं और एक सार्वजनिक प्राधिकरण या कोगी की परंपरा थी जिसे अनेक विद्वान वह आधार मानते हैं जिस पर आधुनिक संविधानवाद का सफल निर्माण हुआ। दूसरे शब्दों में, विचार-विमर्श के जरिए निर्णयों पर पहुंचने की परंपरा थी। हम यह पहले ही देख चुके हैं कि लोकुनाबा काल के दौरान शोगुन के अधिकार सामंती नहीं, बल्कि विशुद्ध तौर पर एकतंत्रीय या स्वेच्छाचारी किस्म के थे।

   प्रारंभिक महीनों में मेजी के नेताओं ने एक वक्तव्य जारी किया। यह वक्तव्य असल में एकता के लिये की - गयी एक अपील थी जिसने भावी बदलाव की नींव रखी! सम्राट ने 6 अप्रैल, 1868 को जो शपथ-घोषणा पत्र जारी किया उसमें पांच अनुच्छेद थे। इनमें से पहले अनुच्छेदों में यह वचन था--“व्यापक रूप से बुलायी गयी एक सभा की स्थापना की जाएगी और राज्य के सभी मामलों का निर्णय सार्वजनिक विचार-विमर्श से किया जाएगा" इसने एक संवैधानिक शासन व्यवस्था का आधार तैयार किया।

    संविधान की प्रकृति के बारे में निर्णय छेते समय जो महत्वपूर्ण समस्याएं सामने आयीं उनका संबंध इनसे थाः

· किस गति से इन उपायों को लागू किया जाएगा,

· सम्राट की शक्ति और अधिकार, और

· इन कानूनों को पारंपरिक जापानी रीतियों का अंग किस प्रकार बनाया जाएगा कि समाज में विधघटन नहो। है

मेजी नेता समाजवाद के ख़तरों को भी जानते थे और वे यह नहीं चाहते थे कि जापान को इन समस्याओं का सामना करना पड़े।

   मेजी के नेताओं में से यामागाता आरितोमो का यह तर्क था कि अगर अत्यधिक तेज गति को अपनाया गया तो इससे जनता कट जाएगी जिससे सामाजिक अस्थिरता पैदा होगी। दूसरी ओर, इतो हिरोबूमी का तर्क था कि जापान अब एक परस्पर निर्भर विश्व का हिस्सा था और जापान के भीतर सैबुराई को मिले विशेषाधिकार, वजीफे और अधिकार समाप्त किये जा चुके थे, इसलिये, इस बदले वातावरण में जनतांत्रिक विचारों की उपेक्षा करनां संभव नहीं था और यह आवश्यक था कि सत्ता में भागीदारी की जाये।

   सबसे उदारबादी दृष्टिकोण ओकूुमा शिगेनोबू का था जिसने एक अंग्रेजी ढंग की संसदीय व्यवस्था की वकालत की। ओकुमा हिजेन प्रांत से था और एक पार्षद्‌ के रूप में, और 1873-1880 के बीच वित्त मंत्री के रूप में काम कर चुका था। मार्च 1881 का उसका स्मरण-पत्र एक क्रांतिकारी प्रस्ताव था जिसमें 1883 तक संसद की स्थापना और 1882 में चुनावों की वकालत की गयी थी। इसमें यह सुझाव भी था कि जिस दल को बहुमत मिले वह सरकार का गठन करे। उसने लिखा, “संवैधानिक सरकार दलीय सरकार होती है और दलों के यीच होने वाले संघर्ष सिद्धांतों के संघर्ष होते हैं।''

   इससे लगभग विपरीत ध्रुव पर स्थित दृष्टिकोण बेजी नेताओं के केंद्रीय गुट के सदस्य और प्रभावशाली सामंत इवाकुरा तोमोमी का था। उसका और इनोवे कोवाशी का तर्क यह था कि इंग्लैंड की तरह जापान में राजनीतिक दलों की कोई परंपरा नहीं थी और वे यहां सफल नहीं होंगे। इसलिये, सम्राट को संसदीय बहुमत से स्वतंत्र मंत्रिमंडल को नियुक्त और भंग करना चाहिये। इस तरह के दृष्टिकोणों का प्रभावशाली अखबारों ने भी समर्थन किया। सरकार का एक करीबी अखबार तोक्यो निचची निची शिनबूम सम्राट की दिव्यता का समर्थक था।

   राजभक्‍त परंपरा का यह तर्क रहा था कि जापान की रचना देवताओं ने की थी और सम्राट सूर्य देवी का सीधा वंशज था, जिसका पौत्र जापान का पहला सम्राट हुआ। शाही घराने की वंश परंपरा कहीं भी टूटी  नहींथी और इसने जापान के राजनीतिक ढांचे या कोछुताई को अनूठा बनाया था। कोछुताई का शाद्दिकअर्थ होता है शजनीतिक संकाय या संगठन, और यह शब्द सम्राट के कार्यों के गिर्द चलने वाली बहतों में एक महत्वपूर्ण शब्द बन गया था। भेजी काल के दौरान इस शब्द की मिथकीय परंपराओं के विरुद्ध तर्क देने के लिए भी, कई प्रकार से विवेचना हुई, लेकिन बाद में यह शब्द एक दैवीय सम्राट के विचार से विशेष रूप से जोड़ दिया गया।

   आधुनिकीकरण के एक प्रबल पोषक और प्रभावशाली मेजी-कासीन बुद्धिजीवी फुकुजावा ने शाही घराने पर एक लेख लिखा जिसमें उसने यह तर्क दिया कि शाही परिवार को राजनीति से बाहर रहना चाहिए क्योंकि वह सभी का था। सप्नाट एकता और निरंतरता का प्रतीक रहेगा, और सत्ता जिम्मेदार दलों के बीच घूमेगी। इन बहसों से ज्ञासक तंत्र के भीतर विचारों की विविधता का और उस स्थिति का पता चलता है जिसमें ये नेता राष्ट्रीय नीति के अनिवार्य लक्ष्यों पर व्यापक रूप से सहमत होते हुए भी विभिन्‍न विचार या दृष्टिकोण रखते थे। संविधान का प्रारूप तैयार करने की प्रक्रिया इतो हिरोबूमी की अध्यक्षता वाले एक दल ने अत्यंत गोपनीयता में चलायी, जर्मनी के कानूनी विद्वान एथ, रेसलर और ए. मोर्स उनके सलाहकार थे। लेकिन, इस प्रारूप के तैयार होने से पहले ही, एक शाही अध्यादेश ने 1884 में एक अभिजातवर्गीय व्यवस्था बना दी और 1885 मे एक मंत्रिमंडलीय व्यवस्था कायम की जिसमें इतो हिरोबूमी पहले प्रधानमंत्री बने।

   अक्तूबर 11, 1881 को एक शाही आदेश में एक संविधान का वचन दिया गया जिससे “हमारे क्षाही वारिसों को अपने दिशा निर्देश के लिये एक शासन मिल सके।” यह संविधान 1890 में प्रभावी होना था और इसका बुनियादी सिद्धांत यह था कि संसदीय जनतंत्र पर अंकुश रहना चाहिए नहीं तो वह सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को भंग कर देगा। विरोधी दल समस्याएं खड़ी न कर पायें, इसे और भी सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक सभाओं और प्रकाशनों पर नियंत्रण की गरज से कानून लागू किये गये। अंत में, 1887 में शांति संरक्षण कानून बनाकर पुलिस को यह अधिकार दे दिया गया कि वह ऐसे किसी भी व्यक्ति को हटा दे “जो अशांति की योजना बनाता है या अशांति भड़काता है, या जिसे सार्वजनिक शांति को भंग करने वाली कोई भी योजना बनाने का दोषी पाया जाता है।"

   संविधान का अंतिम प्रारूप अप्रैठ, 1888 को पेश किया गया और 11, फरवरी, 1889 को सम्राट ने यह संविधान अपनी प्रजा को भेंट किया इस दिन को किगेनसेत्सु कहा जाता है, जब पहले सम्राट जिब्मू की कथित वार्षिकी मनायी जाती है।

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