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भारत के संविधान में प्रदान किए गए विभिन्‍न मूल अधिकारों की चर्चा कीजिए।

 मूल संविधान (1950) में सात मौलिक अधिकार थे। लेकिन 44वें संशोधन के बाद 1978 में इन्हें छः: कर दिया गया। इस संशोधन ने सातवें मौलिक अधिकार “सम्पति” के अधिकार को समाप्त कर दिया था। यह अधिकार अनुच्छेद 31 के अंतर्गत था। आप नीचे इन अधिकारों के बारे में उप-इकाई में अध्ययन करेंगे।

1. समानता का अधिकार

अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता के अधिकार से संबंधित है। अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं करेगा तथा भारत के किसी भी क्षेत्र में उन्हें समान रूप से कानून के द्वारा सुरक्षा प्राप्त होगी। इस प्रकार यह अधिकार सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान करता है। किसी भी व्यक्ति, धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म के स्थान पर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा। अनुच्छेद 15.16,17, और 18 सामाजिक एवं आर्थिक समानता से संबंधित है। अनुच्छेद 15 राज्य को किसी भी व्यक्ति के विरूद्ध धर्म, भाषा, जाति के आधार पर भेदभाव करने को निषेध मानता है। हालांकि राज्य कुछ विशेष सकारात्मक नीतियां बना सकता है महिलाओं, बच्चों, सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों एवं अनुसूचित जाति एवं जन जाति वर्गों के लिए। यह अधिकार किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक स्थानों, रेस्टोरेंन्ट होटल, दुकान या मनोरंजन के स्थानों, कुंओं का प्रयोग करने, इत्यादि का प्रयोग करने में किसी भी प्रकार के भेदभाव को निषेध मानता है।

अनुच्छेद 16 सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने की गारन्टी देता है। यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को रोजगार के अवसर प्रदान करना तथा किसी भी प्रकार के भेदभाव को निषेध मानता है। राज्य किसी भी नागरिक को धर्म, जाति, लिंग, नस्ल या जन्म स्थान के आधार पर रोजगार के मामलों में भेदभाव नहीं कर सकता है। अनुच्छेद 17 के अंतर्गत अस्पृश्यता या छुआछूत का पूर्ण रूप से प्रतिबंध किया गया है। किसी भी प्रकार की छुआछूत का कानूनी रूप से दंडनीय अपराध माना गया हैं। अनुच्छेद 18 के अंतर्गत राज्य किसी भी प्रकार को उपाधि नहीं देगी सिवाय सेना या शैक्षिक प्रतिष्ठा के अलावा | कोई भी भारतीय नागरिक विदेशी राज्य से किसी भी प्रकार की उपाधि स्वीकार नहीं करेगा। कोई भी व्यक्ति जो पद पर आसीन हो वह किसी भी प्रकार का गिफ्ट, उपहार स्वीकार नहीं करेगा तथा कोई भी विदेशी उपहार भी स्वीकार नहीं करेगा।

2. स्वतंत्रता का अधिकार

स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक दिया गया है। स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में पूर्ण नहीं है। यह कानूनी रूप से नियंत्रित अधिकार है। अनुच्छेद 19 में निम्नलिखित अधिकार दिये गये है :-

i. भाषण एवं अभिव्यक्ति की आजादी - इसका मुख्य उद्देश्य भारत की एकता एवं संप्रमुता की रक्षा करना, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, कानून और व्यवस्था, नैतिकता स्थापित करना, तथा सार्वजनिक संपत्ति को गंदा ना करना या किसी गलत कार्य को उकसाना इत्यादि।

ii. बिना हथियारों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होना, यह भारत की सुरक्षा एवं एकता एवं अखंडता को सुनिश्चित करता है, तथा शांति व्यवस्था कायम रखता है।

iii. संघ एवं संगठनों को गठित करना, यह भारत की संप्रभुता एवं एकता को संयोजित रखता हैं तथा लोक नैतिकता को भी बनाये रखता है। यह “सहयोगिक समाज” जो कि 2012 में 97वें संशोधन के द्वारा जोड़ा गया था, को भी शामिल करता है।

iv. भारत के किसी भी क्षेत्र में मुक्त भ्रमण करना, इससे आम नागरिक एवं अनुसूचित जनजातियों के हितों का सुरक्षित रखा जाता है।

v. भारत के किसी भी भूभाग में निवास करना या स्थायी आवास बनाना। तथा

vi. किसी व्यवसाय को शुरू करना, किसी भी कारोबार, व्यापार या व्यवसाय को करना, यह शिक्षित व्यवसाय पर आधारित होता है। इसके लिए योग्यताएं होना आवश्यक है।

अनुच्छेद 20, 21 एवं 22 व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है। सभी मौलिक अधिकारों में यह केन्द्रिय अधिकार है अर्थात्‌ जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार | 2002 में न्यायपालिका ने इस अधिकार की सही तरीके से व्याख्या की थी। इसके अतिरिक्त, 2002 में 86 वें संविधान संशोधन के द्वारा, अनुच्छेद 21 ए भी जोड़ा गया था जिसमें राज्य छः: वर्ष से चौदह वर्ष के बीच के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा की गांरटी प्रदान करता है। पहले यह नीति-निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 45 में शामिल था। अनुच्छेद 20 राज्य द्वारा गैर कानूनी तरीके से पीड़ित व्यक्ति को मुफ्त सुनवायी की व्यवस्था का प्रावधान करता है। किसी भी व्यक्ति को सजा नही मिल सकती सिवाय किसी कानून के उल्लंघन करने के अतिरिक्त | अनुच्छेद 22 कें अंतर्गत विभिन्‍न प्रकार के खंड बनाये गये हैं जिसमें किन्हीं मामलों में गिरफ्तारी एवं सजा से संरक्षण प्रदान किया गया है।

3. शोषण के विरूद्ध अधिकार

भारत के संविधान में अनुच्छेद 23 एवं 24 शोषण के विरूद्ध अधिकार से संबंधित है। अनुच्छेद 23 बाल शोषण, बेगार तथा बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाता है। अनुच्छेद 24 के अनुसार, 14 वर्ष से कम की आयु के बच्चों को किसी भी फैक्ट्री, कारखानें, या हानिकारक व्यवसाय में रोजगार नहीं दे सकते या उन्हें काम पर नहीं रख सकते हैं।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। सभी व्यक्तियों को किसी भी धर्म की पूजा, उपासना करने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन यह स्वतंत्रता नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था एवं स्वास्थ्य पर निर्भर है। इसके अलावा संविधान के भाग तीन दिये गये प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिये। इस अनुच्छेद के मुताबिक कोई भी निर्धारित कानून इसको प्रभावित नहीं करेगा तथा राज्य को भी कानून बनाने से कोई भी रोक नहीं सकता।

i) किसी भी आर्थिक, वित्तिय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरेपेक्ष कार्य को नियमित करना जो कि धार्मिक कार्यों से संबंधित हो।

ii) सामाजिक कल्याण और सुधार प्रदान करना या हिंदू धार्मिक संस्थाओं को सभी वर्गों के लिए खोलना।

विवेक की स्वतंत्रता को दो अनुच्छेदों द्वारा मजबूत बनाया गया है। ये अनुच्छेद है 27 एवं 28 | अनुच्छेद 27 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि या रखरखाव में व्यय के लिये कोई कर अदा करने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। अर्थात्‌ यदि करों का इस्तेमाल सभी धर्मों की अभिवृद्धि के लिये किया जाता है तो कोई आपत्ति नहीं हो सकती। अनुच्छेद 28 पूर्णतया राज्य निधि से संचालित शैक्षिक संस्थाओं में कोई धार्मिक शिक्षा देने का पूर्णतः प्रतिषेध करता है। राज्य से मान्यता तथा सहायता प्राप्त संस्थाओं के मामलों में, प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित न होने की स्वतंत्रता होगी।

5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार

अनुच्छेद 29 एवं 30 संस्कृति और शिक्षा के अधिकार से संबंधित है। अनुच्छेद 29 भारत में कहीं भी निवास करने वाले नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि, या संस्कृति है, उसे बनाये रखने के अधिकार की गांरटी देता है। किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा संचालित या उससे सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षा संस्था में केवल धर्म, मूलवंश जाति या भाषा के कारण प्रवेश देने से इंकार नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद 30 के अनुसार धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और उनके प्रबंध का अधिकार होगा।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

अनुच्छेद 32 के अनुसार भारतीय संविधान मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिये समुचित कार्यवाही द्वारा देश के सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटाने के अधिकार की गांरटी देता है। उच्चतम न्यायालय जिन उपायों से मूल अधिकारों की रक्षा करता है उन्हें याचिका या न्यायिक प्रक्रिया कहा जाता है। ये रिट या न्यायिक प्रक्रिया इस प्रकार है :- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण रिट। सर्वोच्च न्यायालय मूल अधिकारों को लागू कराने के लिये इन याचिकाओं का आदेश दे सकता है। 

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