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नगरवाद एक जीवनशैली के रूप में

 लुई वर्थ अपने किताब 'नगरवाद एक जीवन की पद्धति के रूप में (1938) लिखते है कि शहर में रहना प्रभावित करता है कि हम एक.दूसरे से कैसे बात करते है और यह हमारे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता है। वे शहर का अपेक्षाकृत बड़ा, घना और सामाजिक रुप से भिन्न व्यक्तियों को स्थाई बसावट के रुप म चित्रण करता है और नगरीय लोगों में अनेक तरह के सामाजिक संबंधो और व्यवहार के पैटर्नों को जन्म देता है | और, लुइस वर्थ तर्क देते है कि शहरों का प्रभाव शहर से ज्यादा होता हैं। इस तरह, शहर करीब के गाँवों के साथ.साथ दूर तक के समुदायों को भी अपने कक्ष में ल लेता हैं। दूसरे शब्दों में, नगरीकरण एक जीवन के रुप में मात्र शहरी लोगां के लिए ही खास नहीं है क्योंकि शहर का प्रभाव इसके प्रशासनिक सीमा से दूर तक फैलता हैं। संक्षिप्त में, नगरीकरण इसके जनसांख्यिकी के अर्थ मं नगरीय जनसंख्या की वृद्धि के प्रारुप का दर्शाता हैं।

सामाजिक और सामाजशास्त्रीय प्रसंग मे, नगरीकरण एक अलग तरह के जीवन को दर्शाता हैं खास कर शहर में रहने के अर्थ मंऔर ग्रामीण जीवन को शहरी जीवन में परिवर्तन के रुप में।

नगरीकरण सांस्कृतिक और सामाजिक मनावैज्ञानिक प्रक्रिया को लाग [करता है जहाँ पर लागे भौतिक और अभौतिक संस्कृति, व्यवहारिक पैटर्नस, संगठन के प्रारूप और विचार जो बनता है, या जो शहर से अलग हातो है, को ग्रहण करते है यद्यपि संस्कृति के बहाव का प्रभाव दोनो तरफ होता है.दानों ओर शहर की तरफ और शहर से बाहर.यहाँ पर ठोस सहमति हाती है कि शहरी सांस्कृ तिक प्रभाव बाहरी लागों पर अधिक होता है इसकी तुलना में जो बाहरी संस्कृति का शहरी लोगां पर हाता है। नगरीकरण को इस प्रकाश मं देखने का यह परिणाम हातेा है जिसे टायनबी ने विश्व का “पश्चिमीकरण," कहा है, जब से औद्योगिक अर्थव्यवस्था पश्चिम उपनिवेशवाद के माध्यम से फैली है और विश्व में पूँजीवाद की पहुँच बढ़ी है।

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